जीवन और मृत्यु (life and death)
जीवन और मृत्यु
( life and death )
जीवन और मृत्यु का इस सृष्टि को चलाने में
बहुत ही महत्व पूर्ण भूमिका है ।
हम इस शब्द को बढ़े ही आसानी से बोलते हैं कि हमारी जिंदगी ऐसी वैसी हैं हमारा जीवन खुशहाल है उसका
कष्टदायक है वगैरा वगैरा।
क्या कभी इन शब्दों पर गौर किया है क्या कभी इस
मृत्यु और अपने पैदा होने के चक्र को समझा है।
आज के इस भाग- दौड़ भरी जिंदगी में हम
अपने आप को समझ ही नहीं पा रहे हैं।
यही कारण है कि हम इस जीवन , मृत्यु के
चक्र में अपनी पहचान नहीं बना पाते ।
जिसने इस चक्र को समझा वो उस मृत्यु को भी जान लिया कि हमारी मृत्यु कब और कहां , कैसे होने वाली है
आप को इतिहास में इस बात के प्रमाण आज भी
लिखे हुए हैं।
पहले हम जीवन के बारे बात करेंगे ।
जीवन (life)
पृथ्वी पर जब हम किसी के जरिए किसी जाति में हमारे बीज
की उत्पत्ति होती है तो ओ बीज उस नर में ९ महीने ८ महीने
उसके पेट में पलता है जिसे हम गर्भावस्था कहते हैं।
जब हम ९ महीने बाद हम इस संसार में आते हैं।
तो हमारा जन्म होता है फिर हम जैसे जैसे बड़े होते हैं
हमें बोलने समझने की शक्ति विकसित होती चली जाती है
हमें मां , बाप, भाई, बहन, के नाम से रिश्तों की पहचान मिलती
जाति है फिर हम चार पांच साल के बाद गुरुकुल school
(स्कूल) में उन भाषा हमारे पूर्वज और उन भौतिक जगत
का ज्ञान लेते हैं ।
जब हम २०-२५ साल के होते हैं तो अपने जाति वंस को
आगे ले जाने के लिए हमारा विवाह कर दिया जाता है ।
फिर हम अपने योग्य ता के अनुसार उस बंधन को
आगे ले जाते हैं । हमारे बच्चे पैदा होते हैं जिनको हम अपने
जाति वर्ण का नाम देते हैं फिर हम ६० वर्ष तक भौतिक
चक्र में चलने के बाद संसार के बंधनों से मुक्त होने का
समय आता हैं और वो कब आता है ये अपनी
ज्ञान बुद्धि पर निर्भर करता है जिसको हम मृत्यु कहते हैं।
हमारे ग्रंथो में उन गुरुओं ने इसे कई भागों में विभाजित
किया है जिसे बालवस्था , किशोरवस्था, तरुणवस्था
और वृद्धावस्था। इसी को हम जीवन कहते हैं। और जिस जिस काल में हम जीते है उसे ही हम जिंदगी कहते हैं।
इसी तरह यही हमारा जीवन काल है और इस काल से ही
इस ब्रह्माण्ड का चक्र चलता है।
Death (मृत्यु).......
हमारे जीवन में मृत्यु का बहुत ही अहम योगदान होता है
कहते हैं मृत्यु कभी बता कर नहीं आती
ये बात कहां तक सच है बता पाना मुश्किल है
क्यों कि हमारे धर्म ग्रंथों में इसका उल्लेख कई तरह से
बताया गया है इसे पाप पुण्य के आधार पर बयां
किया गया है और ये सभी धर्म ग्रंथो इस पाप पुण्य का
ही वर्णन मिलता है ।
मृत्यु वो शक्ति है को संसार का संतुलन बनाए
रखने मै अहम योगदान देती है मृत्यु के कारण ही
संसार का काल घटित होता है नई नई
रचनाएं होती है ये हमारे साथ ही नहीं संसार में सब प्राणी
पेड़, पौधे, जीव, जंतु के साथ होता है
जब हम वृद्ध हो जाते हैं हमारे अंग हमारा साथ नहीं देते
सिर्फ सासें चलती हैं और एक समय ऐसा आता है।
वो सांस हमारे शरीर को छोड़ देती है जिसे हम मृत्यु
कहते है
मृत्यु कई तरह से आती है कभी बचपन में तो कभी
किशोर में तो कभी तरुण में भी आ जाती
ये क्यों होता इसका लेख हम आगे के ब्लॉग में
एक रोचक तथ्य ओ के साथ आएंगे ,,,, धन्यवाद…..
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